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NDA और महागठबंधन के वोट कहां से आए, समझिए किस जाति ने किसे सबसे ज्यादा वोट किया

पटना:

बिहार विधानसभा का चुनाव खत्म हो चुका है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार का गठन भी हो चुका है. इस बार के चुनाव में एनडीए ने 202 सीटों पर बंपर जीत के साथ सत्ता में वापसी की है. इस बार के चुनाव में एनडीए गठबंधन को बंपर वोट भी मिले हैं. अकेले एनडीए गठबंधन ने 47 फीसदी वोट हासिल किया है.

Ascendia के डेटा के अनुसार एनडीए को ईबीसी, एससी-एसटी के 60 फीसदी आबादी का वोट मिला है. दूसरी तरफ महागठबंधन को इसके कोर वोटर मुस्लिम और यादव के 60 फीसदी वोटरों का समर्थन मिला है. जहां तक सभी समुदायों का वोटों का मामला है तो उसमें महागठबंधन को भी सभी तबके का समर्थन मिला जरूर है लेकिन वो एनडीए के बराबर नहीं है.

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पटना:

बिहार विधानसभा का चुनाव खत्म हो चुका है. नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार का गठन भी हो चुका है. इस बार के चुनाव में एनडीए ने 202 सीटों पर बंपर जीत के साथ सत्ता में वापसी की है. इस बार के चुनाव में एनडीए गठबंधन को बंपर वोट भी मिले हैं. अकेले एनडीए गठबंधन ने 47 फीसदी वोट हासिल किया है.

Ascendia के डेटा के अनुसार एनडीए को ईबीसी, एससी-एसटी के 60 फीसदी आबादी का वोट मिला है. दूसरी तरफ महागठबंधन को इसके कोर वोटर मुस्लिम और यादव के 60 फीसदी वोटरों का समर्थन मिला है. जहां तक सभी समुदायों का वोटों का मामला है तो उसमें महागठबंधन को भी सभी तबके का समर्थन मिला जरूर है लेकिन वो एनडीए के बराबर नहीं है.

यादवों के लिए नो इफ, नो बट केवल आरजेडी

जहां तक राज्य में यादव मतदाताओं के वोट का सवाल है तो इसमें उन्होंने महागठबंधन को चुना है. कुल 38 फीसदी मतों का 10 फीसदी हिस्सा महागठबंधन को गया है. आरजेडी के सीएम फेस रहे तेजस्वी यादव ने इस गठबंधन की अगुवाई की थी. एनडीए को मिले कुल 47 फीसदी वोट में से 3 फीसदी यादव मतदाताओं ने वोट किया जबकि अन्य को 16 फीसदी में से महज 1 फीसदी यादवों ने वोट दिया.

गैर यादव ओबीसी का रुझान जानिए

राज्य के गैर यादव ओबीसी वोटर ने एकमुश्त एनडीए को अपना वोट दिया. कुल 47 प्रतिशत मतों का 7 फीसदी गैर ओबीसी आबादी ने एनडीए को समर्थन दिया. उसी तरह महागठबंधन को मिले कुल 38 फीसदी मतों में से तीन प्रतिशत ने महागठबंधन को वोट देना पसंद किया जबकि केवल एक फीसदी ने अन्य को वोट किया, जिनको कुल 16 प्रतिशत वोट मिला है. 

ईबीसी का भरोसा एनडीए पर

बिहार की ईबीसी आबादी ने सबसे ज्यादा भरोसा एनडीए गठबंधन पर किया. 47 प्रतिशत मिले वोटों में से 15 फीसदी ईबीसी आबादी ने एनडीए गठबंधन को वोट दिया. महागठबंधन को मिले 38 प्रतिशत वोट में से महज 6 फीसदी ने मत दिया. अन्य को कुल 16 फीसदी मिले मतों में केवल 1 फीसदी हिस्सा ही ईबीसी वोटर का उनके खाते में आया है. 

ये भी पढ़ें: बिहार चुनाव में असली वोटकटवा कौन– पीके, बीएसपी या ओवैसी?

एससी-एसटी का रुझान किसकी ओर?

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ने भी एनडीए को सबसे ज्यादा समर्थन दिया. एनडीए को मिले कुल 47 प्रतिशत वोट में से एससी-एसटी के 13 प्रतिशत लोगों ने सत्तारूढ़ गठबंधन को वोट दिया.  महागठबंधन को कुल मिले वोटों में केवल 4 प्रतिशत एससी-एसटी ने वोट किया. अन्य को मिले कुल 16 फीसदी वोट हिस्सेदारी में कुल 5 फीसदी एससी-एसटी ने वोट किया है.

मुस्लिम महागठबंधन के साथ

जहां तक बाद मुस्लिम मतदाताओं की है तो उन्होंने खुलकर महागठबंधन को वोट किया. महागठबंधन को मिले कुल 37 प्रतिशत मत में से 13 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं का हिस्सा था. एनडीए के 47 प्रतिशत वोट के हिस्से में महज 2 प्रतिशत मुस्लिमों ने एनडीए के पक्ष में वोट किया.  अन्य को मिले कुल 16 फीसदी हिस्से में 3 प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं ने अन्य को वोट किया.

बिहार चुनाव में एनडीए का जलवा

अगर सभी वोट प्रतिशत को जोड़ते हैं तो एनडीए का हिस्सा महागठबंधन की तुलना में करीब 9 फीसदी ज्यादा बैठ रहा है. एनडीए को जहां राज्य में 47 प्रतिशत वोट मिले वहीं महागठबंधन को कुल 38 फीसदी ही वोट मिले. अन्य को 16 फीसदी वोटों से संतोष करना पड़ा.

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AUS vs IND: भारत और ऑस्ट्रेल‍िया के बीच चौथा टी20 गोल्ड कोस्ट के कैरारा में हेर‍िटेज बैंक स्टेडियम में हुआ. इस मुकाबले को भारतीय टीम ने 48 रनों से जीत... 

Axar patel, AUS vs IND 4th T20I: ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ गोल्ड कोस्ट के कैरारा में हुए चौथे टी20 को भारतीय टीम ने 48 रनों से जीत लिया.

इसके साथ ही टीम इंडिया ने सीरीज में 2-1 की अजेय बढ़त ले ली. सीरीज का आखिरी मुकाबला ब्रिस्बेन में 8 नवंबर को खेला जाएगा. 

अक्षर पटेल ने हेर‍िटेज बैंक 

अक्षर पटेल भारतीय टीम के लिए जितेश शर्मा के आउट होने के बाद बल्लेबाजी करने आए थे. ज‍ितेश के आउट होते ही टीम इंड‍िया का स्कोर 136/6 हो चुका था. इसके बाद अक्षर ने 11 गेंदों पर 21 गेंदों रनों की ताबड़तोड़ पारी खेली और टीम इंड‍िया का स्कोर 167/8 तक पहुंचाया. अक्षर को न‍िचले क्रम में वॉश‍िंगटन सुंदर का भी साथ मिला. जिन्होंने 12 रन बनाए. 

भारत के रनों का पीछा करते हुए ऑस्ट्रेल‍िया ने ताबड़तोड़ शुरुआत की. लेकिन फ‍िर अक्षर पटेल ने एक ऐसा स्पेल फेंका कि उसके बाद कंगारू टीम पर ब्रेक लगा. सबसे पहले अक्षर ने ओपनर मैथ्यू शॉर्ट (25 रन 19 गेंद) को पॉवरप्ले में LBW आउट किया, इस तरह ऑस्ट्रेल‍िया का स्कोर 37/1 हो गया  . इसके बाद उन्होंने खतरनाक जोश इंग्ल‍िश को भी 12 रनों पर क्लीन बोल्ड किया. 

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अक्षर को मिला दुबे का साथ 
जब अक्षर ने शुरुआती 2 विकेट लिए तो उनको श‍िवम दुबे का भी भरपूर साथ मिला. दुबे ने इसी बीच अपने पहले ही ओवर में म‍िचेल मार्श ... ​

(30) को आउट कर कंगारू टीम का स्कोर 9.2 ओवर्स में 70/3 स्कोर कर दिया. इसके बाद अपने अगले ओवर में उन्होंने खतरनाक ट‍िम डेव‍िड (14) को कप्तान सूर्यकुमार यादव के हाथों कैच आउट करवाया. जिससे कंगारू टीम का स्कोर 11.3 ओवर्स में 91/4 हो गया. इसके बाद कंगारू टीम के विकेट न‍ियम‍ित अंतराल पर गिरते  रहे और पूरी टीम 18.2 ओवर्स में महज 119 रनों पर ढेर हो गई.

भारतीय टीम की ओर से वॉश‍िंगटन सुंदर ने 3 विकेट झटके. लेकिन असली मैच टर्नर अक्षर पटेल साब‍ित हुए और बाद में श‍िवम दुबे ने भी साब‍ित कर दिया कि भारतीय टीम की ओर से वॉश‍िंगटन सुंदर ने 3 विकेट झटके. लेकिन असली मैच टर्नर अक्षर पटेल साब‍ित हुए और बाद में श‍िवम दुबे ने भी साब‍ित कर दिया कि उनकी गेंदबाजी में दम है. दुबे ने एश‍िया कप फाइनल में भी शानदार गेंदबाजी की थी.  अब दोनों टीमों के बीच अगला मुकाबला 8 द‍िसंबर को ब्रिस्बेन के गाबा मैदान में होगा. 

भारत vs ऑस्ट्रेल‍िया टी20 सीरीज 2025 शेड्यूल
पहला टी20: 29 अक्टूबर, कैनबरा (मैच रद्द)
दूसरा टी20: 31 अक्टूबर, मेलबर्न (ऑस्ट्रेल‍िया 4 विकेट से जीता)

तीसरा टी20: 2 नवंबर, होबार्ट (भारतीय टीम 5 विकेट से जीती) 
चौथा टी20: 6 नवंबर, गोल्ड कोस्ट (48 रन से जीता भारत)
पांचवां टी20: 8 नवंबर, ब्रिस्बेन​​​​​​​​​​​

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“बिहार में पहले चरण में बंपर वोटिंग: नीतीश सरकार के खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर क्यों नहीं दिखी?”

बिहार में पहले चरण की वोटिंग में महिलाओं की लंबी लंबी लाइनें बता रही हैं कि नीतीश कुमार के नाम पर महिलाओं ने भर भर कर वोट दिया है. जबकि समझा जा रहा था...

बिहार विधानसभा चुनावों के लिए पहले चरण की वोटिंग में इतिहास बन गया है. बताया जा रहा है कि 2020 में जितने वोट पड़े थे उससे करीब 8 प्रतिशत अधिक वोट पड़े हैं. बिहार के इतिहास में कभी इतने बड़े पैमाने पर वोटिंग नहीं हुई थी. यह महिलाओं और युवाओं के बढ़ते उत्साह को दर्शाता है. जाहिर है कि मतदाताओं में वोटिंग को लेकर उदासीनता नहीं है. बूथों पर महिलाओं की लंबी लाइन देखने को मिली है. उसी तरह मुस्लिम समुदाय ने भी जमकर वोटिंग की है. जाहिर है कि दोनों ​

पक्ष अपने अपने हिसाब से इसका अर्थ निकाल रहे हैं. पर एक बात और निकल कर आई है कि नीतीश कुमार को जो लोग खत्म मानकर चल रहे ,थे उनके लिए सेटबैक है.

 

1-नीतीश की ईमानदार और ‘सॉफ्ट गवर्नेंस’ वाली छवि

नीतीश कुमार को बिहार में अब भी एक संवेदनशील और संतुलित प्रशासक के रूप में देखा जाता है. उनके शासन की शैली आक्रामक राजनीति की न होकर समझौतावादी और व्यवस्थावादी रही है. यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है. उन्होंने अपने कार्यकाल में जनता के साथ संवाद बनाए रखा. चाहे जनता के दरबार में मुख्यमंत्री का कार्यक्रम हो या पंचायत स्तर पर योजनाओं की मॉनिटरिंग.

 

2-महिलाओं के लिए क्यों मसीहा बन गए नीतीश

बिहार की महिलाएं नीतीश कुमार के पक्ष में सबसे मजबूत और स्थायी वोट बैंक बन चुकी हैं. उनके शासन की कई प्रमुख योजनाएं जैसे छात्राओं के लिए साइकिल योजना, पोशाक योजना, बालिका प्रोत्साहन योजना, कुशल युवा कार्यक्रम, शराबबंदी कानून, और नौकरियों में महिला आरक्षण ने ... 

3-बीजेपी और जेडीयू का गठबंधन बेमेल नहीं

नीतीश कुमार के पक्ष में एक बात और जाती है, वह है उनका बीजेपी के साथ सबसे पुराना गठबंधन. जब देश भर की पार्टिया.

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पाकिस्तानी अखबार से बहुत दिनों से कटकटाया था रूस, इस बार घटियापन पर निकाली खुन्नस, दुनिया के सामने किया 'नंगा'

Russia blasts Pakistani daily for spreading Russophobic: पाकिस्तान एक बार फिर से सुर्खियों में है, हर बार की तरह इस बार भी उसकी जमकर फजीहत हुई है. पाकिस्तानी मीडिया ने रूस को लेकर कुछ ऐसी खबरें छापीं कि रूसी दूतावास का पारा हाई हो गया. अब रूस ने सोशल मीडिया पर पाकिस्तान की जमकर क्लास लगा दी.  पूरी दुनिया देख रही है कि कैसे रूसी एंबेसी ने पाकिस्तानी अखबार को आड़े हाथों लिया. चलिए, समझते हैं क्या हुआ.

 

 

रूस क्यों हुआ खफा?
रूसी एंबेसी ने आरोप लगाया कि इस न्यूज के इंटरनेशनल सेक्शन में ऐसी एक भी खबर ढूंढ़ पाना मुश्किल है जिसमें रूस या उसके नेतृत्व की सकारात्मक या बिना किसी पक्षपात की खबरें प्रकाशित की गई हों. रूसी दूतावास ने कहा कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संपादकीय बोर्ड के अलग दृष्टिकोणों वाले लेखकों को प्रकाशित करने के अधिकार का सम्मान करते हैं, हालांकि रूस विरोधी लेखों को देखकर यह सवाल उठता है कि क्या संपादकीय बोर्ड की नीति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बजाय रूस विरोधी ताकतों के राजनीतिक एजेंडे से प्रभावित है.

रूस क्यों हुआ खफा?
रूसी एंबेसी ने आरोप लगाया कि इस न्यूज के इंटरनेशनल सेक्शन में ऐसी एक भी खबर ढूंढ़ पाना मुश्किल है जिसमें रूस या उसके नेतृत्व की सकारात्मक या बिना किसी पक्षपात की खबरें प्रकाशित की गई हों. रूसी दूतावास ने कहा कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संपादकीय बोर्ड के अलग दृष्टिकोणों वाले लेखकों को प्रकाशित करने के अधिकार का सम्मान करते हैं, हालांकि रूस विरोधी लेखों को देखकर यह सवाल उठता है कि क्या संपादकीय बोर्ड की नीति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बजाय रूस विरोधी ताकतों के राजनीतिक एजेंडे से प्रभावित है.

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दिल्ली ब्लास्ट से सामने आया 'डॉक्टर मॉड्यूल', जानें- ‘व्हाइट कॉलर टेरर' के पीछे 6 किरदार कौन

लाल किले के पास सोमवार को यह धमाका तब हुआ जब कुछ घंटे पहले ही तीन डॉक्टरों समेत आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया था. पुलिस ने 2900 किलो विस्फोटक भी जब्त किया गया था. जांच में इस ब्लास्ट के कई किरदार अब तक बेनकाब हो चुके हैं.













​​दिल्ली के ऐतिहासिक लाल किले के पास हुए धमाके की जांच में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं. मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई है. सोमवार शाम को यह धमाका तब हुआ जब कुछ घंटे पहले ही तीन डॉक्टरों समेत आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया था और 2,900 किलो विस्फोटक जब्त किया गया था. इसके साथ ही जैश-ए-मोहम्मद और अंसार गजवत-उल-हिंद से जुड़े एक व्हाइट कॉलर टेरर मॉड्यूल का भी खुलासा हुआ, जो कश्मीर, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक फैला हुआ था.
इस ब्लास्ट के कई किरदार बेनकाब हो चुके हैं. पुलिस ने अब तक 6 ऐसे डॉक्टरों को पकड़ा है जिनके तार आतंकी मॉड्यूल से जुड़ रहे हैं. पहला और सबसे बड़ा नाम डॉक्टर मोहम्मद उमर का है, जो पुलवामा के कोइल गांव का रहने वाला था और फरीदाबाद के अल-फलाह मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर था. इसे ही पूरी साजिश का किंगपिन माना जा रहा है. ये पेशे से डॉक्टर था लेकिन शक है कि ये जैश के लिए काम कर रहा था.


जसे i20 कार में धमाका हुआ, उसमें उमर सवार था और धमाके से थोड़ी देर पहले तक भी वो उस कार में नजर आया. पिछले दो साल से वो फरीदाबाद के अल-फलाह अस्पताल में डॉक्टर का काम कर रहा था. दो महीने पहले वो कश्मीर आया था. परिवार का कहना है कि उसे इसकी भनक नहीं थी कि वो इन गतिविधियों में शामिल था. लेकिन वो उस फरीदाबाद टेरर मॉड्यूल का हिस्सा था जिसके कई लोग गिरफ्तार किए जा चुके थे, जबकि उमर फरार था.

ये कहा जा रहा है कि साथियों की गिरफ्तारी के बाद घबराहट में उसने धमाका किया. कार उसके नाम पर थी, जो तारिक से खरीदी गई थी. अब DNA टेस्ट से पुष्टि होगी कि कार में वही था और उसने ये सुसाइड हमला किया है. उसकी मां शमीमा बानो, भाई आशिक और जहूर पुलिस हिरासत में हैं और उनसे पूछताछ की जा रही है.

डॉ आदिल राठर दूसरा अहम किरदार
दूसरा और बेहद अहम किरदार है डॉ आदिल राठर. ये कश्मीर के काजीगुंड, कुलगाम का रहने वाला है. इसने GMC श्रीनगर से MBBS किया और अनंतनाग GMC में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर था. फरीदाबाद मॉड्यूल और दिल्ली धमाके की कहानी अक्टूबर महीने से शुरू होती है जब श्रीनगर में जैश-ए-मोहम्मद के 
पोस्टर लगाने की जांच शुरू हुई.


डॉ मुजम्मिल के घर से मिला 2900 किलो विस्फोटक
साजिश का तीसरा किरदार है डॉक्टर मुजम्मिल और ये भी डॉक्टर उमर की तरह ही पुलवामा का रहने वाला है. मुजम्मिल जम्मू-कश्मीर पुलिस की हिरासत में है. 35 वर्षीय का ये MBBS डॉक्टर फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च सेंटर में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम कर रहा था. उसने फरीदाबाद के धौज और फतेहपुर टगा गांव में दो किराए के मकान लिए थे. वहीं से 2900 किलो विस्फोटक और हथियार बरामद किए गए हैं.

व्हाइट कॉलर टेरर इकोसिस्टम का मास्टरमाइंड मुजम्मिल
मुजम्मिल को 30 अक्टूबर 2025 को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने जैश-ए-मोहम्मद के पोस्टर लगाने के मामले में वांटेड घोषित किया. 9 नवंबर 2025 को फरीदाबाद में जम्मू-कश्मीर पुलिस और हरियाणा पुलिस की जॉइंट टीम ने उसे गिरफ्तार किया. वो व्हाइट कॉलर टेरर इकोसिस्टम का मास्टरमाइंड था, जिसमें पढ़े-लिखे प्रोफेशनल्स रैडिकलाइज होकर पाकिस्तानी हैंडलर्स से जुड़े थे फरीदाबाद मॉड्यूल जैश और अंसार गजवत-उल-हिंद से जुड़ा था. फंडिंग पाकिस्तान से टेलीग्राम चैनल्स और क्रिप्टो के जरिए आती थी.
 
दिल्ली ब्लास्ट से सामने आया 'डॉक्टर मॉड्यूल', जानें- ‘व्हाइट कॉलर टेरर' के पीछे 6 किरदार कौन

बिहार में NDA की सुनामी के पीछे अमित शाह का 'पंचतंत्र', BJP के चाणक्‍य की चाल से महागठबंधन चारों खाने चित

बिहार में NDA की इस शानदार जीत को केवल एक पार्टी या नेता की जीत नहीं कहा जा सकता, लेकिन ये अमित शाह के सुनियोजित 'पंचतंत्र' की सफलता ही है, जिसने ऐसा अजेय मोर्चा तैयार किया कि विपक्ष चारो खाने चित होती दिख रही है.

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फटाफट पढ़ें
खबर का सार AI ने दिया. न्यूज टीम ने रिव्यू किया.
  • बिहार चुनाव में एनडीए को मिली बंपर जीत के पीछे अमित शाह की कुछ रणनीतियों की अहम भूमिका बताई जा रही है
  • उन्होंने NDA के सभी दलों के शीर्ष नेतृत्व के बीच समन्वय और तनाव दूर करने में महत्वपूर्ण जिम्‍मेदारी निभाई
  • बूथ और ब्लॉक स्तर पर वोट शेयरिंग की माइक्रो-प्लानिंग कर अमित शाह ने गठबंधन के वोटों को एकजुट किया
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Amit Shah Five Masterstrokes: बिहार में सियासी सरगर्मी के बीच जब बीजेपी समेत अन्‍य पार्टियों के स्‍टार प्रचारक ताबड़तोड़ रैलियों में लगे थे, तब अमित शाह भी पटना पहुंचे, लेकिन वो प्रचार में शामिल नहीं हुए. दो से तीन दिन भले ही वो किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में नहीं दिखे, लेकिन भीतर-भीतर वो एक मिशन पर लगे थे. वो मिशन था, बागियों को मनाने का मिशन, उन्‍हें चुनाव में शांत बिठाने का मिशन. आज जब बिहार विधानसभा चुनाव की तस्‍वीर साफ हो रही है तो उनकी इस रणनीति का असर साफ दिख रहा है. ये तो हुई, एक रणनीति. उन्‍होंने ऐसे ही कई और बड़े रणनीतिक कदम उठाए, जिन्‍होंने बिहार में एनडीए को इतनी बड़ी बढ़त दिलाई.

नतीजों ने एक बार फिर साबित किया है कि रणनीति और संगठनात्मक कौशल, चुनावी जीत की सबसे बड़ी नींव होते हैं. जानकारों के मुताबिक, इस जीत के केंद्र में बीजेपी के प्रमुख रणनीतिकार कहे जाने वाले अमित शाह की वह सूक्ष्म और बहुआयामी रणनीति रही. उनकी 5 प्रमुख रणनीति को निर्णायक बताया जा रहा है, जिनमें गठबंधन प्रबंधन, कार्यकर्ता संपर्क और जमीनी समन्वय का अद्भुत उदाहरण दिखा.

1. बागियों को मनाने का 'स्ट्रैटजिक साइलेंट' अभियान

चुनावी रणनीति की पहली और महत्वपूर्ण कड़ी थी, गठबंधन में उभरे असंतोष और विद्रोह को शांत करना. अमित शाह ने चुनाव प्रचार की भागदौड़ के बीच एक अहम कदम उठाया. उन्होंने दो से तीन दिनों तक कोई सार्वजनिक कार्यक्रम नहीं किया. इस दौरान उनका पूरा ध्यान उन बागी नेताओं और उम्मीदवारों पर था, जो टिकट नहीं मिलने या अन्य कारणों से नाराज थे. शाह ने व्यक्तिगत रूप से उनसे संपर्क किया, उनकी बातें सुनीं और उन्हें गठबंधन के बड़े हित में समझा-बुझाकर मनाया. इस 'स्ट्रेटजिक साइलेंस' ने NDA को अंदरूनी फूट से बचा लिया और शुरुआती झटकों से उबरने में मदद की.

भागलपुर और बांका का ही उदाहरण लें तो भागलपुर विधानसभा सीट पर पूर्व डिप्‍टी मेयर डॉ प्रीति शेखर, जबकि बांका के अमरपुर से उनके पति मृणाल शेखर, बीजेपी से बागी होकर लड़ने वाले थे, लेकिन बताया जाता है कि अमित शाह के समझाने के बाद दोनों ने पैर पीछे खींच लिए.

2. गठबंधन की गांठ मजबूत की, NDA को एकजुट किए रखा

बिहार की राजनीति में गठबंधनों का टिके रहना हमेशा एक चुनौती रहा है. इस बार NDA में बीजेपी, जनता दल (यूनाइटेड) और लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) के अलावा भी और दल शामिल थे, जिनके अपने-अपने हित थे. अमित शाह ने इस जटिल समीकरण को साधने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वह लगातार सभी दलों के शीर्ष नेतृत्व के संपर्क में रहे और किसी भी तनाव या गलतफहमी को तुरंत दूर करने में भूमिका निभाई. उनकी इस सतर्कता ने गठबंधन को टूटने से बचाया और विपक्ष को एकजुट NDA के सामने मजबूती से खड़े होने का मौका नहीं दिया.

3. LJP और JDU के बीच समन्वय सुनिश्चित किया

सबसे बड़ी चुनौती LJP और JDU के बीच जमीन पर मौजूदा तनाव को मैनेज करना था. केंद्र में साथ रहने के बावजूद, बिहार में दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच खटास थी. अमित शाह ने इस मोर्चे पर महीन प्रबंधन दिखाया. उन्होंने दोनों दलों के प्रदेश नेताओं को एक मंच पर लाने और संयुक्त बैठकें करवाने पर जोर दिया. उनके निर्देश पर बीजेपी के संगठनात्मक ढांचे ने दोनों दलों के बीच एक 'समन्वय समिति' के रूप में काम किया, जिससे चुनावी मैदान में वोटों का विभाजन रुका और एक-दूसरे के उम्मीदवारों के लिए समर्थन जुटा. आपने गौर किया होगा कि जो चिराग पहले सूबे की कानून व्‍यवस्‍था पर नीतीश के नेतृत्‍व वाली सरकार पर सवाल उठाते दिखे थे, कुछ ही दिन बाद, उनकी प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे.

4. वोट शेयरिंग की माइक्रो-प्लानिंग

NDA की जीत का एक बड़ा आधार था, सही ढंग से वोटों का एकमुश्‍त होना. अमित शाह ने इसके लिए माइक्रो-प्लानिंग पर बहुत ध्यान दिया. उन्होंने बूथ और ब्लॉक स्तर के कार्यकर्ताओं के साथ सीधी बैठकें कीं. इन बैठकों में उन्होंने स्पष्ट किया कि किस बूथ पर किस दल का प्रभाव है और कार्यकर्ताओं को किस तरह गठबंधन साथी के उम्मीदवार के लिए काम करना है. इस 'ग्राउंड जीरो' पर उनकी रणनीति ने गठबंधन के वोटों को एक साथ लाने में निर्णायक भूमिका निभाई और सीटें बढ़ाने में मदद की.

5. प्रवासी कार्यकर्ताओं से लगातार संपर्क

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि आधुनिक चुनाव प्रबंधन में प्रवासी समुदाय और डिजिटल प्लेटफॉर्म की भूमिका अहम हो गई है. बीजेपी इस बात को भली-भांति समझते हैं. ऐसे में चुनाव के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहे बिहार के प्रवासी कार्यकर्ताओं और समर्थकों से अमित शाह, लगातार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और फोन कॉल के जरिए जुड़े रहे. उन्होंने उन्हें अपने-अपने इलाकों में परिवार और जाननेवालों से संपर्क करने, चुनावी संदेश फैलाने और मतदान दिवस पर लोगों को ले जाने के लिए प्रेरित किया. इस डिजिटल नेटवर्क ने पार्टी की पहुंच को और मजबूत किया.

हालांकि बिहार में NDA की इस शानदार जीत को केवल एक पार्टी या नेता की जीत नहीं कहा जा सकता, लेकिन ये अमित शाह के सुनियोजित 'पंचतंत्र' की सफलता ही है, जिसने ऐसा अजेय मोर्चा तैयार किया कि विपक्ष चारो खाने चित होती दिख रही है.

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